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नईदिल्ली. माया जोशी(सीएनएस) @www.rubarunews.com>> आज के आधुनिक युग में भी परिवार नियोजन और सुरक्षित यौन संबंध की ज़िम्मेदारी महिलाओं पर ही अधिक है। इसके बावजूद भारत समेत एशिया-पैसिफिक क्षेत्र के कुछ अन्य देशों की अनेक महिलाओं को, आधुनिक गर्भ निरोधक साधन मिल ही नहीं पाते. जिन महिलाओं के लिए आधुनिक गर्भ निरोधक साधन उपलब्ध हैं, और उन्हें मिल सकते हैं, उन्हें भी कई बार अनेक कारणों से अनचाहा गर्भ धारण करना पड़ता है – जैसे गर्भनिरोधक की विफलता, गर्भनिरोधक गोलियां लेने में चूक हो जाना या फिर अपनी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाना। ऐसी महिलाओं के लिए “आपातकालीन गर्भनिरोधक” (इमरजेंसी कंट्रासेप्शन) एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका है जो गर्भावस्था के ज़ोखिम को कम करता है।
आपातकालीन गर्भनिरोधक की शोधकर्ता एवं ऑस्ट्रेलिया प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एंजेला डॉसन ने कहा कि कई महिलाएं आपातकालीन गर्भनिरोधक के महत्वपूर्ण विकल्प से अनभिज्ञ हैं तथा एशिया पैसिफिक क्षेत्र के कई देशों में इसकी पहुँच भी सीमित है, जिसके कारण यह अभी तक एक उपेक्षित गर्भनिरोधक विधि बनी हुई है. प्रोफेसर एंजेला, १०वीं एशिया पैसिफिक कांफ्रेंस ऑन रिप्रोडक्टिव एंड सेक्सुअल हेल्थ एंड राइट्स के छठे वर्चुअल सत्र में आपातकालीन गर्भनिरोधक पर एशिया पेसिफिक संगठन (“एशिया पैसिफिक कंसॉर्शियम फॉर इमरजेंसी कंट्रासेप्शन”) का शुभारंभ करते हुए इस विषय पर अपने विचार रखे।
क्या है आपातकालीन गर्भनिरोधक?
यह एक प्रभावी प्रजनन स्वास्थ्य हस्तक्षेप है जिसके द्वारा विशेष परिस्थितियों में अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाया जा सकता है – जैसे असुरक्षित यौन क्रिया, गर्भनिरोधक की विफलता की आशंका, गर्भनिरोधक का गलत/ अनुचित प्रयोग, या फिर यौन हिंसा या बलात्कार के मामले में। इसका उपयोग यौन क्रिया के पॉच दिनों के भीतर किये जाने पर ९५% से अधिक मामलों में अनपेक्षित गर्भ धारण को रोका जा सकता है। इस प्रकार यह एक महिला को अनपेक्षित गर्भावस्था को रोकने का अंतिम मौका देता है।
दो प्रकार के आपातकालीन गर्भनिरोधक उपलब्ध हैं: आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली (जिसे मॉर्निंग आफ्टर पिल या आई-पिल के नाम से भी जाना जाता है) और ताँबे यानी कॉपर का आईयूडी।
“लिवोनोगेस्ट्रल” की गोली एक आपातकालीन गर्भनिरोधक गोली है जिसे असुरक्षित यौन-संबंध के ७२ घंटे के भीतर खाने से गर्भ धारण करने का खतरा टल जाता है, परन्तु इसका इस्तेमाल जितना जल्दी किया जाए उतना ही बेहतर है। एक अन्य संयुक्त गर्भनिरोधक गोली – “एथिनिल एस्ट्राडियोल प्लस लिवोनोगेस्ट्रल” का भी उपयोग किया जाता है।
“कॉपर आईयूडी” गर्भाशय में लगाया जाने वाला एक छोटा सा गर्भनिरोधक यन्त्र है। जब इसे असुरक्षित यौन क्रिया के पांच दिनों के भीतर गर्भाशय के अंदर डाला जाता है तो यह एक अत्यंत प्रभावकारी आपातकालीन गर्भनिरोधक का कार्य करता है। यह केवल प्रशिक्षित डॉक्टर या नर्स द्वारा ही लगाया जा सकता है। इसको लगातार जारी रहने वाले गर्भनिरोधक के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। परन्तु एंजेला आगाह करती हैं कि यौन उत्पीड़न के उपरांत आईयूडी को नहीं डाला जाना चाहिए क्योंकि इससे महिला को “क्लैमाइडिया” और “गोनेरिया” जैसे यौन संचारित संक्रमणों का ख़तरा हो सकता है। यौन उत्पीड़न के उपचार के बाद ही इसका उपयोग एक लम्बे समय तक कार्य करने वाले प्रतिवर्ती गर्भनिरोधक के रूप में किया जा सकता है और वह भी उत्पीड़ित महिला की रज़ामंदी से।
आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियां ओव्यूलेशन की प्रक्रिया को रोक कर अथवा विलम्बित करके गर्भाधान को रोकती हैं। ये गोलियां न तो गर्भपात करा सकती हैं और न ही ये किसी भी असामान्य भ्रूण के विकास का कारण बनती हैं। कॉपर आईयूडी शुक्राणु और अंडे के मिलने से पहले रासायनिक परिवर्तन करके गर्भाधान को रोकता है। इसके अतिरिक्त, यदि महिला पहले से गर्भवती है तो आपातकालीन गर्भनिरोधक न तो विकासशील भ्रूण को नुकसान पहुँचाते हैं और न ही गर्भपात का कारण बनते हैं।
भारत में आपातकालीन गर्भनिरोधक
भारत में आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों (आई-पिल) की शुरुआत २००२ में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा की गई थी और २००५ से ये दवा की दुकानों पर बिना नुस्खे के मिलने लगीं। सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में गर्भनिरोधक की आवश्यकता बहुत अधिक है। एक अध्ययन के अनुसार २०१५ भारत में अनुमानित ४.८ करोड़ गर्भधारणों में (जिनमें लगभग ५०% अनपेक्षित थे) एक तिहाई, यानि १.५६ करोड़, का गर्भपात हुआ। इनमें से ५% गर्भपात असुरक्षित तरीकों से किए गए थे। १९७१ से भारत में गर्भपात कानूनी रूप से जायज़ होने के बाद भी देश में ८% मातृ मृत्यु असुरक्षित गर्भपात के कारण होती हैं। अनपेक्षित गर्भधारण और अनावश्यक गर्भपात की वजह से होने वाली मौतों को कम करने के लिए आपातकालीन गर्भनिरोधक एक प्रभावी प्रजनन स्वास्थ्य हस्तक्षेप है।
परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आपातकालीन गर्भनिरोधक तरीके केवल आपात स्थिति यानि इमरजेंसी में ही प्रयोग किये जाने चाहिए और इनका इस्तेमाल प्रत्येक यौन क्रिया के बाद लगातार-किये-जाने वाले गर्भनिरोधक की तरह कदापि नहीं करना चाहिए। यह स्मरण रहे कि यह हर अनचाहे गर्भ को रोकने का कोई त्वरित समाधान नहीं है और इसका लगातार उपयोग करने पर महिलाओं को स्वास्थ्य-सम्बन्धी गंभीर दुष्प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं। इसके अलावा, ये महिलाओं को यौन संचारित रोगों से नहीं बचा सकते।
इमरजेंसी गर्भनिरोधक से जुड़ी भ्रांतियाँ
आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों को प्रायः मॉर्निंग आफ्टर पिल कहा जाता है जो सही नहीं है। इसके बारे में यह भी गलत धारणा है कि इससे गर्भपात होता है और स्वच्छंद संभोग को बढ़ावा मिलता है। सही जानकारी के अभाव में कई महिलाएं सोचती हैं कि गर्भ निरोधक के रूप में इनका नियमित उपयोग किया जा सकता है, जो बिलकुल सही नहीं है। इमरजेंसी पिल का गर्भनिरोधक के रूप में नियमित उपयोग नहीं करना चाहिए। भारत में आई-पिल काफी लोकप्रिय है और इसका उपयोग करने वाली बहुत सारी महिलाओं को यह भ्रम रहता है कि इससे उन्हें सुरक्षा मिलेगी। जबकि असुरक्षित यौन संबंध के बाद आई पिल लेने के बावज़ूद एचआईवी, सिफिलिस, गोनोरिया जैसी बीमारियों का खतरा बना ही रहता है।
इन प्रचलित भ्रांतियों के पीछे एक बड़ा कारण है भारतीय समाज में यौन शिक्षा को लेकर जागरुकता की कमी, और सेक्स के प्रति समाज का रूढ़िवादी रवैया-विशेषकर अविवाहित महिलाओं के सन्दर्भ में। ज़ाहिर है कि हमें यौन शिक्षा को लेकर चुप्पी तोड़ने की और गर्भ निरोधकों की सही जानकारियों का लगातार प्रसार करने की सख्त ज़रूरत है।
प्रोफेसर एंजेला ने सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) से कहा कि आपातकालीन गर्भनिरोधक पर एशिया पेसिफिक संगठन (‘एशिया पैसिफिक कंसॉर्शियम फॉर इमरजेंसी कंट्रासेप्शन’) का मुख्य उद्देश्य है पक्ष समर्थन, ज्ञान प्रसार व नेटवर्किंग के माध्यम से उपर्युक्त सभी चुनौतियों का मुकाबला करना ताकि साक्ष्य-आधारित नीति में सुधार किया जा सके और सभी ज़रूरतमंद महिलाओं को आपातकालीन गर्भनिरोधक मिल सके. यह न केवल शोधकर्ताओं के लिए, वरन नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य प्रदाताओं और उपयोगकर्ताओं के लिए भी सूचना का एक आधिकारिक स्रोत होगा।
कोविड-१९ महामारी के इस कठिन काल में इमरजेंसी गर्भनिरोधक की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। इस वैश्विक महामारी से जूझने के लिए किये गए लॉकडाउन के परिणामस्वरूप अंतरंग साथी द्वारा यौन हिंसा में अत्यधिक बढ़ोतरी हुई है; वायरस संक्रमण के डर से महिलाओं की आवश्यक स्वास्थ्य एवं परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच कम हुई है; यह सेवाएँ कुछ स्थानों पर या तो बंद हैं या उनके खुले रहने का समय कम हो गया है. इसके अलावा गर्भ निरोधक की आपूर्ति, खरीद, और वितरण में भी परेशानियां हैं। इन सबके कारण नियमित और आपातकालीन – दोनों ही प्रकार के गर्भनिरोधक तक पहुँच कम हो गयी है तथा अनपेक्षित गर्भधारण और संभावित गर्भनिरोधक विफलताओं की संभावनाएं बढ़ गई हैं। एशिया पैसिफिक के १४ देशों में किये गए मॉडलिंग अध्ययनों से ज्ञात होता है कि प्रजनन आयु की लगभग ३२% महिलाएं २०२० में अपनी परिवार नियोजन की आवश्यकताओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होंगी।
आपातकालीन गर्भ निरोधकों को सभी परिवार नियोजन कार्यक्रमों व महिला स्वास्थ्य सेवाओं में शामिल किया जाना चाहिए, और ये उन सभी महिलाओं व लड़कियों को उपलब्ध होने चाहिए जिन्हें इसकी सख्त ज़रुरत हो। इसके साथ ही सभी महिलाओं को यह समझने की आवश्यकता है कि इमरजेंसी गर्भनिरोधक लंबे समय तक इस्तेमाल किये जाने वाले प्रतिवर्ती गर्भ निरोधक तरीकों का स्थान नहीं ले सकते हैं। ये केवल आपातकालीन स्थिति में ही प्रयोग में लाये जाने चाहिए।
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