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राजनीति और धर्म : सुप्रीम कोर्ट की प्रेरक टिप्पणी …! Politics and Religion: Motivational remarks of the Supreme Court…!

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भोपाल.( शैलेन्द्र शैली )/ @www.rubarunews.com>>नफ़रत फैलाने वाले भाषणों पर अपनी  गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विगत 29 मार्च 2023 को बेहद महत्वपूर्ण और प्रेरक टिप्पणी की है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कहा है कि ” राजनीति में धर्म का उपयोग नहीं होना चाहिए।जिस क्षण राजनीति और धर्म अलग हो जायेंगे और नेता राजनीति में धर्म का उपयोग बंद कर देंगे , ऐसे नफ़रत के भाषण समाप्त हो जायेंगे ।” सुप्रीम कोर्ट ने नफ़रत के भाषण रोकने के संबंध में राज्यों की निष्क्रियता पर भी चिंता व्यक्त कर फटकार लगाई है।

सुप्रीम कोर्ट की यह प्रेरक टिप्पणी लोकतांत्रिक मूल्यों ,सहिष्णुता ,सद्भाव की रक्षा हेतु हमारी मार्गदर्शक है और देश की एकता, सद्भाव और धर्म निरपेक्ष मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध ताकतों के लिए भी ऊर्जादायक है।इस पर अमल होना ही चाहिए

दरअसल जनता की बुनियादी समस्याओं ,गरीबी ,बेरोजगारी ,महंगाई ,कुपोषण ,खस्ता अर्थ व्यवस्था ,कुछ बड़े पूंजीपतियों से सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की सांठगांठ तथा इससे हो रहे दुष्परिणामों से जनता का ध्यान हटाने के लिए ही जनता को नफ़रत की राजनीति में फंसाया जा रहा है ताकि अन्याय और अत्याचारों का प्रतिरोध करने हेतु जनता एकजुट होकर लामबंद नहीं हो।धर्म के उन्माद का यह ऐसा गंदा खेल है जिसके दुष्परिणाम अब अपना असर दिखा रहे हैं।जनता पर फासीवाद का संकट गहराता ही जा रहा है।

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अब समय आ गया है जब राजनीति में धर्म का उपयोग करने वालों के खिलाफ जनता लामबंद हो और लोकतंत्र के लिए घातक ऐसे लोगों और राजनीतिक दलों का बहिष्कार किया जाए ।धर्म के आधार पर राष्ट्र बनाने की बात करना भी अक्षम्य अपराध मानना चाहिए क्योंकि ऐसी संकुचित और संकीर्ण सोच भारत के संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है ।इसके लिए वैचारिक अभियान भी बेहद जरूरी है।लेकिन सबसे पहले संकीर्ण मानसिकता के तथाकथित धर्मगुरुओं से तो परहेज़ करना ही चाहिए।

भारत के संवैधानिक मूल्यों और लोकतंत्र की रक्षा करने हेतु  सारे देश को अभी एक लंबी वैचारिक यात्रा करना चाहिए। इसके लिए प्रगतिशील मूल्यों और वैज्ञानिक समझ की  बुनियादी जरूरत है।( यह लेखक के अपने विचार है )

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