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लॉकडाउन में लोग और लोक को डाउन होने से बचाएं :डॉ. सुनील त्रिपाठी निराला

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भिंड l  15 अप्रैल 2020 से कोरोना संकट के चलते भारत में लोक डाउन की अवधि 3 मई तक कर दी गई है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देशवासियों से अपील की है कि कोरोना संकट से निपटने के लिए लॉकडाउन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यह विकल्प कष्टप्रद तो है लेकिन जिंदगी बचाने के लिए आवश्यक है। मैं माननीय प्रधानमंत्री जी की बात का पूरी तरह से समर्थन करता हूं। उनकी जो भावना है उसका आदर और सम्मान करता हूं। एक देश के नागरिक होने के नाते हमारा जो भी दायित्व बनता है उसका निर्वाह करने के लिए मैं सदा तत्पर रहता हूँ।
लॉकडाउन-2 के साथ साथ कुछ प्रश्न भी मस्तक में जन्म ले रहे हैं। पिछला लॉक डाउन 21 दिन का था जिसकी अवधि 14 अप्रैल को समाप्त हुई। अब आगामी 19 दिन और हैं जो कोरोना संकट से निपटने के लिए, संकट पर विजय पाने के लिए बहुत आवश्यक हैं। हम इस संकट से निपटने के लिए प्रयासरत रहें। साथ ही यह भी देखें की देश के खेतिहर मज़दूर, दिहाड़ी मज़दूर, घुमंतू प्रजातियां, रोज़ कमाकर जीवन यापन करने वाले, हाथ ठेला लगाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले, मजदूरी से अपने परिवार का भरण पोषण करने वालों के सामने जीवन मरण का संकट उत्पन्न तो नहीं हो रहा है। हमारी सबसे पहली चिंता होनी चाहिए कि लॉक डाउन की अवधि में लोग और लोक दोनों को ही डाउन होने से बचाया जाए। इसके चलते देश की आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। औद्योगिक इकाइयां बंद है। आवागमन के साधन बंद हैं। लोगों के काम बंद हैं। इस संकट की घड़ी में एक नागरिक होने के नाते, एक इंसानियत के नाते हम सभी का कर्तव्य बनता है कि हमारे पड़ोस में कोई व्यक्ति भूखा न सोए। यह समय ये देखने का नहीं है कि कौन क्या कर रहा है? किसने पहले क्या किया, यह भी देखने का समय नहीं है? हमें वर्तमान देखना है।वर्तमान में यदि कोई पीड़ित मानवता की सेवा के लिए तन मन धन दे रहा है तो हम उसकी वंदना करते हैं। उसका आभार व्यक्त करते हैं। हमें आज बचाना है। हमें आज बचाकर कल के भारत को बचाना है। आज हमें आज बचाके कल की भारत की संस्कृति सभ्यता और संतान को बचाना है। हम जहां हैं वहीं रहकर के दीन, दुखी और निबलों की सेवा में प्राणपण से जुट जाएं। यही सच्ची देशभक्ति है। लोक सेवा कैसे कर सकते हैं। गरीबों की मदद कर सकते हैं। इसके लिए बाहर जाने की आवश्यकता क्या है ? देश के सभी नागरिक ऐसे हैं जिनका पड़ोस है। बगल में, सामने, पीछे हमारे कोई व्यक्ति भूखा प्यासा तो नहीं सो रहा है। हमारे आस पास जो घर हैं इन घरों में कोई संकटग्रस्त तो नहीं है। बस यही संकल्प सब लोग उठाएं तो पूरा देश इस वैश्विक महामारी के संकट से बड़ी आसानी से निपट सकता है। आपाधापी से बचकर भी जनसेवा हो सकती है।
यह समय कृषि कार्य का है। फसलें पक्की हुई खड़ी हैं। कुछ कट गई हैं। वो फसलें किसान के घर तक पहुंचे इसके लिए प्रशासन को चाहिए कि किसानी के काम में अधिक सख्ती न बरती जाए। किसानों की मजबूरी है। अगर 8 आदमी नहीं होंगे तो थ्रेसर नहीं चलेगा। ऐसी स्थिति में सोशल डिस्टेंशन का काम भी बाधित हो सकता है। लेकिन मजबूरी है। किसान के साल भर का जो साधन है वह यही समय है जब उनकी फसल घर पहुंचती है।
सरकार को इस बात पर भी बारीक़ नजर रखनी चाहिए कि जिन क्षेत्रों में प्रतिबंध के साथ सीमित कामकाज प्रारंभ हो सकता है वहां कामकाज प्रारंभ करने की अनुमति दी जाए ताकि धीरे-धीरे लोगों की आवश्यकताओं की पूर्ति भी होती रहे और संकट से बचाव भी होता रहे। कुछ लोग इधर से उधर जाने के इच्छुक हैं उनको पूरे निर्देशों का पालन करते हुए अपने गंतव्य तक पहुंचने की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जानी चाहिए। ऐसी स्थिति में उन लोगों के सामने रोटी का संकट है वह घर पहुंचने पर दूर हो जाएगा। सरकार को ऐसी नीति बनानी पड़ेगी और उस पर सख्ती से अमल भी करना पड़ेगा। लोगों को भी चाहिए की सरकार जो उम्मीद रखती है उस उम्मीद पर खरा उतरें। सरकार द्वारा जो भी कदम उठाए जाते हैं वह जन हित, लोक हित में उठाए जाते हैं। देश सुरक्षित रहेगा तो हम भी सुरक्षित रहेंगे। हमें कानून नहीं तोड़ना है। हमारे अधिकार अनंत हैं तो हमारे कर्तव्य भी अपार हैं।

डॉ. सुनील त्रिपाठी निराला
भिण्ड.मो.9826236218

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