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त्याग और संतोष से बनेंगे स्थितप्रज्ञ – स्वामी तद्रूपानंद

भोपाल.Desk/ @www.rubarunews.com>>आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास, संस्कृति विभाग द्वारा 29वीं शंकर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस व्याख्यानमाला में मनन आश्रम, भरूच के संस्थापक आचार्य स्वामी तद्रूपानंद सरस्वती जी का स्थितप्रज्ञ दर्शन विषय पर प्रबोधन प्रसारण हुआ। स्वामीजी ने बताया कि दो महाकाव्य और चार महावाक्य में सम्पूर्ण सनातन दर्शन अभिव्यक्त होता है।

दर्शन की व्याख्या करते हुए स्वामीजी ने स्पष्ट किया कि दर्शन का अर्थ होता है जानना, न कि देखना। स्वामीजी ने कहा कि भगवत गीता के कृष्णार्जुन संवाद में स्थितप्रज्ञ की परिभाषा दी गई है। अर्जुन श्री कृष्ण से स्थितप्रज्ञ व्यक्ति के लक्षण पूछते हैं, जिसका उत्तर देते हुए भगवान कहते हैं कि जब साधक समस्त वासनाओं का त्याग कर देता है और अपने से अपने में संतुष्ट रहता है, तब वह स्थितप्रज्ञ कहा जाता है। स्वामीजी ने बताया कि अनासक्ति और इच्छाओं के त्याग के द्वारा ही मनुष्य दुखों के बंधन से और अज्ञान से मुक्त हो पाता है। ऐसी स्थिति में ही उसे आत्म-स्वरूप को जानने की जिज्ञासा प्रबल होती है। इसके लिए श्रवण, मनन और निदिध्यासन का मार्ग अपनाना चाहिए। जिसने ज्ञानाग्नि में अपनी इच्छाओं को भस्म कर दिया है तथा जो आत्म-स्वरूप में स्थित है, वही स्थितप्रज्ञ है।

स्वामी तद्रूपानंद सरस्वती

पूज्य स्वामी तद्रूपानन्द सरस्वती मनन आश्रम, भरूच के संस्थापक आचार्य हैं। स्वामीजी ने सन 1966 से 1972 तक गुजरात विश्वविद्यालय में मानसशास्त्र विषय का अध्यापन किया। तत्पश्चात् आपने सांदीपनी साधनालय मुंबई में पूज्य स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती एवं स्वामी दयानन्द सरस्वती के सानिध्य में प्रस्थानत्रयी का परंपरागत शास्त्राध्ययन किया। स्वामीजी ने कैलाश आश्रम ऋषिकेश में स्वामी विद्यानंद गिरी एवं स्वामी हरिहरानंद तीर्थ के मार्गदर्शन में शास्त्राभ्यास किया। सन 1982 में पूज्य स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने आपको संन्यास में दीक्षित किया। वर्ष 1987 में स्वामीजी ने भरूच में मनन आश्रम की स्थापना की। उपनिषद, ब्रहमसूत्र, श्रीमदभगवत गीता एवं आचार्य शंकर रचित प्रकरण ग्रन्थों पर स्वामीजी की टीका अंग्रेज़ी, हिन्दी, गुजराती एवं मराठी भाषा में उपलब्ध है। स्वामीजी ने देश-विदेश में अनेक ज्ञानयज्ञ एवं वेदान्त शिविरों के माध्यम से वेदान्त का प्रचार-प्रसार किया है।

आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास द्वारा आदिगुरु शंकराचार्य और अद्वैत वेदान्त दर्शन के लोकव्यापीकरण के लिए प्रतिमाह इस व्याख्यानमाला का आयोजन किया जाता है। इस व्याख्यान को न्यास के यू-ट्यूब और फेसबुक चैनल पर देखा जा सकता है।