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संघर्ष-संवाद से आन्दोलन को गति मिलती है, कानून संघर्ष की अगली परिणिति है– अरुणा रॉय

🔴संघर्ष-संवाद से आन्दोलन को गति मिलती है, कानून संघर्ष की अगली परिणित है – अरुणा रॉय
आर टी आई पर 61 वें राष्ट्रीय वेबिनार का हुआ आयोजन
सूचना आयोग की सोशल ऑडिट और जनसुनवाई आवश्यक
सिस्टम को बदलने की जरुरत है, लाखों पेड़ों के बलिदान को रोकना बहुत जरुरी – शैलेश गाँधी
भारत में व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की बड़ी जरुरत, जल्द लागू हो

दतिया @rubarunews.com>>>>>>>>>>>>>>>>>>रक्षाबंधन के पावन अवसर पर दिनांक 22 अगस्त को 61वें राष्ट्रीय सूचना के अधिकार ज़ूम वेबिनार का आयोजन किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता मप्र राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने की जबकि कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक श्रीमती अरुणा रॉय एवं निखिल डे, पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, वरिष्ठ आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश वेल्लोर सम्मिलित हुए.

बता दें की यह कार्यक्रम प्रत्येक रविवार को सुबह 11 बजे से दोपहर 02 बजे तक आयोजित किये जाते हैं जिसका उद्देश्य सूचना के अधिकार कानून को जन जन तक पहुंचाने का होता है. कार्यक्रम में भारत के विभिन्न राज्यों मप्र, उप्र, राजस्थान, गुजरात, विहार, आन्ध्र प्रदेश, असम, नई दिल्ली, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, झारखण्ड, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों से सहभागी सम्मिलित होते हैं जो अपनी बातें रखते हैं और प्रश्नों के जवाब पाते हैं।

61वें ज़ूम मीटिंग कार्यक्रम के सफल आयोजन में मुख्य रूप से कार्यक्रम का संयोजन एवं प्रबंधन का कार्य आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानन्द द्विवेदी, अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा, अम्बुज पाण्डेय, देवेन्द्र अग्रवाल, पत्रिका समूह से वरिष्ठ पत्रकार मृगेंद्र सिंह ने किया।

संघर्ष-संवाद से आन्दोलन को गति मिलती है, कानून संघर्ष की अगली परिणित है – अरुणा रॉय

61 वें ज़ूम मीटिंग में विशिष्ट अतिथि के तौर पैर पधारीं वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राईट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक श्रीमती अरुणा रॉय ने बताया की आरटीआई कानून को वर्तमान अवस्था तक लाने में काफी संघर्ष करना पड़ा है. आज जो कानून वर्तमान स्वरूप में है उसके लिए हमने 1980 के दशक से पहले से ही संघर्ष प्रारंभ किया है. सबसे पहले मजदूर किसान शक्ति संगठन – एम्केएसएस नमक संगठन बनाया गया जिसमे गाँव के मजदूर किसान जुड़े, उन्होंने हमारा पैसा हमारा हिसाब टैग से आन्दोलन प्रारंभ किया. इसके बाद जब कानून बनाने की बात आई तो उन्होंने बताया की नेशनल एडवाइजरी काउंसिल में भी उन्हें और उनकी टीम के कुछ सदस्यों को रखा गया जहाँ जो ओरिजिनल कानून का मसौदा बनाया गया वह पूर्ण नहीं हो पाया क्योंकि जो सुझाव दिए गए थे उसको सरकारी मशीनरी ने काफी हद तक मॉडिफाई करने के बाद लागू किया. अतः जो मुद्दे हमने कानून में रखे थे उन सबको अक्षरशः नहीं लिया गया. उन्होंने बताया की जो सुझाव और जो बातें उनकी टीम के द्वारा रखी गयी थी यदि वह सब लागू हो पाती तो शायद भारत का आरटीआई कानून दुनिया का सबसे शक्तिशाली पारदर्शिता का कानून होता. उन्होंने बताया की इसलिए हमारे आरटीआई कानून को अपंग बनाया गया. आरटीआई के सेक्शन 4 के प्रावधानों के जबाब में उन्होंने बताया की सरकारों पर दबाब बनाना पड़ेगा और जबाबदेही कानून लाना पड़ेगा जो की पारदर्शिता कानून अर्थात आरटीआई कानून के आगे का चरण है. श्रीमती रॉय ने कहा की कानून कायदे हमेशा की मांगों और संघर्षों के बाद आते हैं. पहले संघर्ष और संवाद होते हैं फिर कानून आते हैं. इसके उपरांत भी जब कानून का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं होता तब फिर आन्दोलन करने पड़ते हैं।

राजस्थान का जन सूचना पोर्टल देश के लिए मिसाल

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक श्रीमती अरुणा रॉय और निखिल डे ने बताया की राजस्थान में लगभग 75 विभागों की सूचनाओं को एक जगह एकत्रित करके जन सूचना पोर्टल का स्वरुप दिया गया है जहाँ ज्यादातर जानकारी मिल जाएगी. यदि इसी प्रकार की व्यवस्था हर प्रदेश में लागू कर दी जाए तो पारदर्शिता लाने और धारा 4 के प्रावधान लागू करने में क्रांति आ सकती है. हालाँकि उन्होंने बताया की यह व्यवस्था अभी तक मात्र राजस्थान के बाद कर्नाटक में ही लागू हो पायी है. उन्होंने आगे बताया की जन सूचना पोर्टल से अब तक 7 करोड़ लोगों ने फाइल और सूचनाएं डाउनलोड की हुई हैं. उन्होंने आगे यह भी कहा की इस प्रकार की व्यवस्था लागू करवाने के लिए भी आन्दोलन की जरूरत है. हर राज्यों के आर टी आई कार्यकर्ता इस बात को लेकर आन्दोलन करें।

आरटीआई कानून बेनकाब करने के साथ-साथ देश के प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाने का कानून है

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक श्रीमती अरुणा रॉय ने बताया की लोगों को व्यक्तिगत जानकारी के साथ-साथ जनहित की व्यापक जानकारी पर भी केन्द्रित होना चाहिए. पब्लिक इम्पोर्टेंस की जानकारी से देश की व्यवस्था में सुधार आता है. उन्होंने कहा की गाँव के लोगों के बीच में बैठकर सूचना एकत्रित करने के लिए काम करने की जरूरत है. आम व्यक्ति को आसानी से सूचना प्राप्त नहीं हो पाती. बड़े अधिकारी हों अथवा छोटे कर्मचारी सभी अपने से बड़े अधिकारी की बात तो सुनते हैं लेकिन यदि वही जानकारी आम नागरिक मागे तो उसे नहीं मिलती. जवाबदेही अपवर्ड न होकर डाउनवर्ड भी होनी चाहिए. हमे इसके लिए सिस्टम को बदलने की दिशा में काम करने की जरूरत है. उन्होंने कहा की देश का क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम पूरी तरह से करप्ट है. हमने 1980 से व्यक्तिगत लड़ाई से आन्दोलन प्रारंभ किया और यह आरटीआई कानून के रूप में सामने आया. सूचना का अधिकार कानून बेनकाब करने के लिए तो है ही उससे कहीं अधिक देश की प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए है।

रायपुर छत्तीसगढ़ से देवेन्द्र अग्रवाल के एक प्रश्न का जबाब देते हुए उन्होंने बताया की सिस्टम में सुधार लाया जा सकता है लेकिन उसके लिए काम करने की जरुरत है. सिस्टम का हिस्सा होकर कभी-कभी स्वयं भी व्यक्ति करप्ट कैसे हो जाता है इस विषय पर उन्होंने कहा की इंसान में नैतिक होने की इच्छा और अनैतिक होने की मज़बूरी होती है. उन्होंने आगे कहा की आरटीआई कानून पानी की तरह है जिसे आप जिस बर्तन में रखते हैं उसी का आकार ले लेता है. अरुणा रॉय ने कहा की आरटीआई और पारदर्शिता कानून के बाद उनका अगला पड़ाव और संघर्ष जबाबदेही के कानून के लिए है जो जारी है. उन्होंने कहा की जब तक जबाबदेही का कानून नहीं आता तब तक पारदर्शिता का कानून अधूरा है।

सिस्टम को बदलने की जरुरत है, लाखों पेड़ों के बलिदान को रोकना बहुत जरुरी – शैलेश गाँधी

कार्यक्रम में अपने विचार रखते हुए पूर्व केन्द्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा की हमे व्यक्तिगत सूचनाओं के साथ-साथ जनहित के विशेष मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है. हमें अब सिस्टम पर फोकस करने की जरूरत है. उन्होंने एक बार पुनः पर्यावरण के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा की हमारे देश के नीति निर्माताओं की आँखें कोविड के बाद भी नहीं खुली हैं जब हमारे देश के लाखों नागरिक ऑक्सीजन की कमी के चलते मौत के घाट उतर गए. अब समय आ गया है जब पेंड़ों को भी अपने इष्ट परिजन की तरह ही ट्रीट किया जाए और हमारे दिन प्रतिदिन के उपयोग में आने वाले कागज के लिए कटने वाले पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर लगाम लगे. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा की जब कार्यालय में पत्र जारी होते हैं तो उन्हें ऑनलाइन कर दिया जाय जिससे सभी उसको देख पायें और कागज की फोटो कॉपी करने की कम जरुरत पड़ें।

चार से पांच मुद्दे उठाए जिसे निरंतर बढायें

श्री गांधी ने दूरगामी बिन्दुओं पर चर्चा करते हुए कहा की यदि बड़ा सुधार लाना है तो हमे कुछ महत्वपूर्ण 4 या 5 बिन्दुओं को उठाना पड़ेगा जिसको लॉन्ग रन में लेकर चलना पड़ेगा. यह मुद्दे जैसे वर्चुअल कोर्ट, ऑनलाइन सुनवाई, पेपरलेस ऑफिस, जवाबदेही कानून, आरटीआई कानून की धारा 4 का पूर्णतया क्रियान्वयन, व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट आदि जैसे हो सकते हैं. इस विषय पर हम आगे भी चर्चा करेंगे ऐसा उन्होंने कहा. हमे टीवी अखबार में न्यूज़ देख-सुनकर खुस नहीं होना चाहिए. हमें आगे भी धरातल पर बहुत कुछ करने की जरूरत है जो हम अभी उस तरह नहीं कर पा रहे है. उन्होंने पेंडिंग प्रकरणों के बारे में बताया की विकसित और अच्छे माने जाने देशों में देखा जाय तो तीन साल के भीतर 70 से लेकर 80 प्रतिशत तक मामलों का समाधान हो जाता है जबकि हमारे देश में तीन साल में 10 प्रतिशत मामलों का भी निपटारा नहीं हो पाता जो चिंताजनक है. देश की न्यायिक प्रणाली वेंटिलेटर पर है।

सूचना आयोग की सोशल ऑडिट और जनसुनवाई आवश्यक

सूचना आयोग में बढ़ रही पेंडेंसी पर सवाल उठाते हुए वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राईट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक श्रीमती अरुणा रॉय, निखिल डे, शैलेश गांधी सभी ने कहा की यह काफी चिंताजनक ट्रेंड है जिसे बदलना पड़ेगा. कई हाई कोर्ट के आदेशों और निर्देशों के बावजूद भी सूचना आयोग मामलों की पेंडेंसी को लेकर गंभीर नहीं है. सूचना आयोगों में पेंडेंसी बढने का एक बड़ा कारण आयुक्तों द्वारा अपने कर्तव्य का सही तरीके से निर्वहन न करना है. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति वरीयता और अर्हता पर आधारित हो और स्वतंत्र हो जिसमें राजनीतिक हस्तक्षेप न हो इस विषय पर भी प्रकाश डाला गया. शैलेश गाँधी ने कहा की आंकड़े निकालने से सूचना नहीं मिलेगी बल्कि इसके लिए भी प्रेशर बनाना पड़ेगा और आन्दोलन करना पड़ेगा।

हमारी सभी सुनवाई ऑनलाइन, पारदर्शिता की दिशा में हमने बड़ा प्रयास किया – राहुल सिंह

उधर मप्र राज्य सूचना आयुक्त और कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री राहुल सिंह ने बताया की उन्होंने प्रारंभ से ही पारदर्शिता को गंभीरता से लिया. पहले उन्होंने फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर के माध्यमों से शिकायत लेना प्रारंभ किया इसके बाद सामाजिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से इंटर्नशिप के लिए प्रयास किये. उन्होंने बताया की इंटर्न के लिए जगह निकाली गई जिसमें इंटर्न भरे गए जो ऑनलाइन हियरिंग में अपना सहयोग प्रदान कर रहे हैं. उन्होंने आगे कहा की जीआरडी डेस्क प्रारंभ किया गया जहाँ 24 बाई 7 कभी भी सन्देश भेजकर अपने प्रकरणों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है. हालाँकि सूचना आयुक्त राहुल सिंह के इन प्रयासों की सभी ने प्रशंसा की और बताया की हर सूचना आयोग में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए।

आरटीआई वेबिनार बहुत बढ़िया फोरम, हम हर कार्यक्रम में रखें प्रस्ताव – निखिल डे

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राईट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक निखिल डे ने कहा की वह आरटीआई वेबिनार में कई बार जुड़ चुके हैं और यह फोरम बहुत ही बढ़िया है लेकिन इसमें कुछ सुझाव दिए और बताया की हमे हर एक वेबिनार में कुछ महत्वपूर्ण और तत्कालीन मुद्दों पर प्रस्ताव रखना चाहिए और उनमे हमे सहमती रखते हुए आगे ले जाने चाहिए. भविष्य में ऐसे मुद्दों पर चर्चा होती रहे और उस पर ओपिनियन बनाकर सरकार और जिम्मेदारों को लिखना चाहिए. इन मुद्दों को लेकर पब्लिक के बीच भी जाना चाहिए और दूरगामी समाधान पर चर्चा और प्रयास करना चाहिए।

इस मीटिंग के दौरान जिन तीन बिन्दुओं पर सहमती व्यक्ति हुई और आगे लेकर जाने का विचार हुआ वह – रक्षाबंधन पर यह संकल्प लें की हम सभी पीड़ितों के लिए खड़े हों जिनको सूचना प्राप्त करने और आरटीआई लगाने के दरमियान हिंसा और प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है. व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाय इस विषय पर भी काम किया जाना चाहिए. तीसरे बिंदु पर उन्होंने कहा की कई बार कुछ ऐसे लोग सूचना मांगते हैं जो गलत उपयोग के लिए भी होती हैं पर हमें ऐसी सूचना को भी आगे ले जाना चाहिए चाहे मागने वाली की मंशा जो भी हो. क्योंकि कई बार ऐसी सूचनाएं भी महत्वपूर्ण होती हैं।

भारत में व्हिसिल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की बड़ी जरुरत, जल्द लागू हो

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता एवं मजदूर किसान शक्ति संगठन एवं नेशनल कैंपेन फॉर पीपल राइट टू इनफार्मेशन की सह-संस्थापक निखिल डे ने बताया की आरटीआई कानून के बाद अब जवाबदेही कानून और व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की सख्त जरूरत है. आज जब आवेदक आरटीआई लगाते हैं तो उनकी मंशा सबसे पहले यही होती है की उनका नाम सामने न आये परन्तु इसके बाबजूद भी उनका नाम सार्वजनिक कर दिया जाता है और आरटीआई में जानकारी मांगने वाला कौन है वह हाईलाइट हो जाता है इससे यदि व्यक्ति सामाजिक तौर पर मजबूत और प्रभावी व्यक्ति नहीं है तो उसे सबसे पहले टारगेट कर दिया जाता है और यहाँ से टार्चर और दबाने का क्रम प्रारंभ हो जाता है. व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की उन्हें भी काफी जरुरत होती है जो सिस्टम के अंदर बैठे हुए हैं और कोई खुलाशा करते हैं तो उन्हें टारगेट कर या की निलंबित कर दिया जाता है अथवा उन्हें ट्रान्सफर कर दिया जाता है. ऐसा व्यक्ति विभागीय अधिकारियों और सरकार की नज़रों में चढ़ जाता है ऐसे लोगों को भी प्रोटेक्शन की जरुरत है. इसलिए हमारी अगली सबसे महत्वपूर्ण कानून के तौर पर आवश्यकता व्हिसल ब्लोअर कानून की है जिसको लागू करने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए।

आत्मदीप और वीरेश वेल्लोर ने बताया कैसे आरटीआई कानून को मजबूत बनाया जाए

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर पधारे पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप और आरटीआई एक्टिविस्ट वीरेश बेल्लूर ने बताया की आरटीआई कानून में जबाबदेही महत्वपूर्ण है लेकिन सूचना आयुक्त पेंडेंसी का समयबद्ध तरीके से निराकरण नहीं कर रहे हैं जिसके चलते आयोगों में पेंडेंसी बढती जा रही है. आत्मदीप ने कहा की यद्यपि राजस्थान में सूचना के अधिकार को लेकर आन्दोलन प्रारंभ हुआ लेकिन आज जिस प्रकार से कार्यक्रम में जुड़े साथी जैसे सुरेन्द्र जैन और नरेंद्र सिंह बताते हैं की कानून के अनुरूप कार्य नहीं हो रहा और भर्रेसाही वहां भी चल रही है. अतः आज यह आवश्यक है की जबाबदेही बढ़ाई जाए जिसके लिए जन आन्दोलन का रूप देने पर ही इसमें सुधार आयेगा।

उधर कार्यक्रम में वीरेश बेल्लूर ने कहा की कर्णाटक में यद्यपि सभी सूचना आयुक्तों के पद भरे हुए हैं लेकिन फिर भी जो सूचना आयुक्त नियुक्त होते हैं वह अपनी जिम्मेदारियों के प्रति काफी लापरवाह हैं जिससे प्रतिमाह यदि देखा जाय तो औसतन 80 से लेकर 100 प्रकरण तक ही निपटारा हो पाता है. कई सूचना आयुक्त तो ऐसे भी हैं जो सूचना आयुक्त के पद पर तो बैठे हैं लेकिन अपना बिजिनेस देख रहे होते हैं. कई तो ऐसे हैं जो कार्यालय में आकर आराम फरमा रहे होते हैं. यह सब डिस्टर्बिंग ट्रेंड है जिसमे सुधार होना चाहिए. वीरेश बेल्लूर ने आरटीआई एक्टिविस्ट और एनसीपीआरआई की मेम्बर अंजलि भरद्वाज की सुप्रीम कोर्ट की एसएलपी पेटीशन की जानकारी देते हुए कहा की उन्होंने इन विषयों को लेकर मामला उठाया हुआ है लेकिन अब तक उसका निराकरण नहीं हो पाया है.

इस प्रकार ज़ूम मीटिंग पूरे 3 घंटे से अधिक चली जिसमे सैकड़ों प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया. अब अगला कार्यक्रम अगले रविवार 29 अगस्त 2021 को आयोजित किया जाएगा जिसमे सूचना के अधिकार और बच्चों के अधिकारों से जुड़े हुए मुद्दों पर चर्चा की जाएँगी। उक्त जानकारी शिवानन्द क द्विवेदी सामाजिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ता रीवा ने दी।