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बाल विवाह मात्र कानून बना देने से नहीं रुकने वाले, इसके लिए जागरूकता का प्रसार जरूरी है- सर्वोच्च न्यायालय

दतिया @Rubarunews.com/ PeeyushRai >> सुप्रीम कोर्ट ने कहा- बाल विवाह से जीवनसाथी चुनने का विकल्प छीन लिया जाता है जो सर्वथा उचित व न्यायसंगत नहीं है…

Child Mmarriages Personal Laws: देश में बाल विवाह रोकथाम कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए उच्चतम न्यायालय ने कई दिशा-निर्देश जारी किए है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम- 2006 सभी ‘पर्सनल लॉ’ पर प्रभावी होगा। बाल विवाह निषेध कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह से जीवनसाथी चुनने का विकल्प छिन जाता है। जो बच्चों के साथ न्यायपूर्ण नहीं है।

संविधान के अनुच्छेद 21 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति को कानून की तय प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत आज़ादी से वंचित नहीं किया जा सकता। साथ ही किसी भी नागरिक को उसके निर्णय लेने से नहीं रोक जा सकता। जबकि बाल विवाह करके अथवा सगाई करके हम अपने बच्चों को उनको प्राप्त संवैधानिक अधिकार निर्णय लेने के अधिकार से वंचित कर देते हैं। अथवा यूँ कहें कि हम उन पर अपने निर्णय थोप देते हैं। जो न्याय संगत नहीं हैं।

आज सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त दिशानिर्देश बाल हितैषी होने के साथ ही बाल अधिकारों के संरक्षण में मील का पत्थर साबित होगा। साथ भावी पीढ़ियों को अनेक दिक्कतों से निजात दिलाएगा।

मध्यप्रदेश में बाल अधिकारों पर कार्यरत धरती संस्था व स्वदेश ग्रामोत्थान समिति (नवांकुर संस्था), जवाहरलाल नेहरू युवा मंडल, मेन्टर यूथ क्लब, नूतन ग्रामोत्थान समिति, चौधरी रूपनारायण लोक कल्याण समिति, मप्र वोलेंट्री एक्शन फ़ॉर सोशल मोबिलाइजेशन (MP VASMNET), चाइल्ड राइट ऑब्जरबेटरी मध्यप्रदेश (CRO MP), मप्र बाल श्रम विरोधी अभियान (MP CACL), मध्यप्रदेश मातृत्व स्वास्थ्य हक़दारी अभियान (मप MHRC) व मध्यप्रदेश एक्शन अगेंस्ट सेक्स सलेक्शन (मप्र आस नेटवर्क) आदि सामाजिक संस्थाएँ व सामाजिक संगठनों के नेटवर्क सामूहिक रूप से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त दिशानिर्देशों की बाल हितैषी मुहिम की सराहना करते हुए धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।