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26 वें RTI वेबिनार के आयोजन में देशभर से एक्टिविस्ट जुड़े

सोशल ऑडिट लोकतंत्र का उत्सव है – डायरेक्टर गुरजीत सिंह

जानकारी, सुनवाई, भागीदारी, कार्यवाही और सुरक्षा सोशल ऑडिट के पांच सिद्धांत – शंकर सिंह

दतिया/ रीवा @rubarunews.com>>>>>>>>आरटीआई और सोशल ऑडिट जनसुनवाई विषय पर तीसरी और सत्र की 26 वीं ज़ूम मीटिंग वेबीनार का आयोजन किया गया। इस बीच कार्यक्रम में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह अध्यक्ष रहे एवं विशिष्ट अतिथि के तौर पर पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप, सोशल ऑडिट टीम झारखंड के डायरेक्टर गुरजीत सिंह, मजदूर किसान शक्ति संगठन राजस्थान के सह-संस्थापक शंकर सिंह सहित संपूर्ण भारत के विभिन्न प्रदेशों मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, नई दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, केरल, उत्तराखंड आदि राज्यों से 50 से अधिक आरटीआई कार्यकर्ता, सोशल एक्टिविस्ट, सिविल राइट्स एक्टिविस्ट एवं अन्य आवेदकगण उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन, संयोजन एवं प्रबंधन का कार्य आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी अधिवक्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट नित्यानंद मिश्रा, शिवेंद्र मिश्रा के द्वारा किया गया।

*सोशल ऑडिट लोकतंत्र का उत्सव है – डायरेक्टर गुरजीत सिंह*

इस बीच झारखंड राज्य के सोशल ऑडिट टीम के डायरेक्टर गुरजीत सिंह ने कहा की आरटीआई कानून के बाद सोशल ऑडिट और जनसुनवाई का महत्व बढ़ गया है। आरटीआई से प्राप्त जानकारी को जन जन तक पहुंचाकर उस जानकारी के माध्यम से भौतिक धरातल पर जो कार्य हुए हैं उनका सत्यापन कर महिलाओं मजदूरों आमजन सभी को साथ में लेकर अंकेक्षण का कार्य किया जाता है और जनसुनवाई की जाती है जिससे शासकीय कार्यों की गुणवत्ता में सुधार होता है और पारदर्शिता आती है।

गुरजीत सिंह ने बताया कि सामाजिक अंकेक्षण की टीम में दो पत्रकार, दो भोजन के अधिकार से जुड़े कार्यकर्ता, दो आरटीआई कार्यकर्ता और दो सामाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित किए जाते हैं। इस प्रकार सोशल ऑडिट टीम में समाज से जुड़े हुए लोग रहते हैं जिससे किसी भी प्रकार की समस्या पैदा नहीं होती है। गुरजीत सिंह ने बताया कि सोशल ऑडिट कानून के तौर पर इंप्लीमेंट किया जाना चाहिए और वास्तव में देखा जाए तो सोशल ऑडिट लोकतंत्र का उत्सव है। क्योंकि इसमें जनता सीधे जुड़ कर अपने पैसे का हिसाब मांगती है और यही लोकतंत्र की मंशा है।

*झारखंड में यह यह हुए नवाचार*

सोशल ऑडिट टीम झारखंड के डायरेक्टर गुरजीत सिंह ने बताया कि उन्होंने 117 योजनाओं का सोशल ऑडिट किया है और साथ में 1100 स्कूलों का भी ऑडिट किया है जिसमें 98 लाख रुपए बच्चों को मध्यान्ह भोजन के लिए दिलाया गया है। उन्होंने बताया कि 1400 करोड़ रुपए की सोशल ऑडिट के माध्यम से वसूली भी की गई है।

*मजदूरों को संगठित करना हमारा सबसे बड़ा प्रयोग*

झारखंड के तारतम्य में गुरजीत सिंह ने बताया कि उनका सबसे बड़ा प्रयोग मजदूरों को संगठित करना है। जिसके लिए उन्होंने मजदूर मंच बनाए हैं और इस मंच के द्वारा काफी कार्य हो रहा है। यदि किसी मजदूर को काम नहीं मिलता है तो उसके लिए सरकार पर दबाव बनाकर पैसा दिलवाया जाता है। गुरजीत सिंह ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा 800 लाख कार्य दिवस का एलॉटमेंट झारखंड के लिए किया गया था जबकि झारखंड सरकार के द्वारा 600 लाख कार्य दिवस निर्धारित किया गया। वर्तमान में सरकार द्वारा 900 लाख कार्य दिवस के प्रयास किए जा रहे हैं जिसे उनकी सोशल ऑडिट टीम जल्द ही पूरा कर लेगी।

सोशल ऑडिट और आरटीआई से पारदर्शिता बढ़ी है जिसमें कई मस्टररोल सामने आए हैं जो मृत लोगों के नाम और बंद कार्यों के निकाले गए थे तथा साथ में क्रियान्वयन एजेंसी को भी इसके बारे में अवगत कराया गया और उस पर भी कार्यवाही करवाई गई। समाज और मजदूरों को उनका अधिकार का पता चले यही सोशल ऑडिट का मुख्य मंत्र है।

*सोशल ऑडिट का भी किया जाना चाहिए ऑडिट – सूचना आयुक्त राहुल सिंह*

इस बीच झारखंड से पधारे सोशल ऑडिट टीम के डायरेक्टर गुरजीत सिंह के कार्यों की प्रशंसा करते हुए मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि झारखंड में अच्छा कार्य किया जा रहा है जिससे समाज और मजदूरों को जोड़कर सोशल ऑडिट के माध्यम से जनसुनवाई की जा रही है और उन्हें उनका अधिकार दिलवाया जा रहा है। राहुल सिंह ने कहा कि सोशल ऑडिट कब कहां कैसे किया जाता है मध्यप्रदेश के परिपेक्ष में इसका कोई पता नहीं चल पाता है जिसकी वजह से समाज में अव्यवस्था और भ्रष्टाचार बढ़ गया है। सरकारी योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं होता हैऔर मनरेगा में मजदूरी की शिकायतें मिलती रहती है साथ में पंचायती भ्रष्टाचार भी बढ़ रहा है। श्री सिंह ने कहा कि ऐसे में सोशल ऑडिट की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाना चाहिए और वेब पोर्टल में साझा किया जाना चाहिए। और ऐसे सोशल ऑडिट का भी आडिट किया जाना चाहिए।

 

*सोशल ऑडिट को कानून बनाने की होनी चाहिए पहल, सभी आरटीआई एक्टिविस्ट करें प्रयास – शंकर सिंह*

मजदूर किसान शक्ति संगठन के संस्थापक शंकर सिंह ने कहा कि सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं में कार्य करवाए जाते हैं। लेकिन सही मॉनिटरिंग और कार्यवाही के अभाव से भ्रष्टाचार बढ़ जाता है। शंकर सिंह ने कहा कि सोशल ऑडिट में जनता की भागीदारी महत्वपूर्ण है। जैसे एक डॉक्टर किसी बीमारी का इलाज करने के लिए सीटी स्कैन और एमआरआई करता है और बारीक से बारीक बिंदु की खोज कर उसका इलाज करता है ऐसे ही सोशल ऑडिट में भी सबसे पहले कागज इकट्ठा किया जाता है और लोगों को जानकारी दी जाती है। हर एक कार्य का भौतिक सत्यापन किया जाता है, हर मजदूर के पास जाकर उसे जानकारी ली जाती है, फिर जहां जहां समस्या उत्पन्न हुई है और भ्रष्टाचार दिख रहा है उन सभी बिंदुओं को रेखांकित और चिन्हित किया जाता है। इस प्रकार सोशल ऑडिट करने से सरकारी कार्यों में जो भी अनियमितता होती है वह सामने आ जाती है। एनीकट निर्माण का उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि गांव में 100 ट्रॉली पत्थर का उपयोग किया गया बताया गया था लेकिन बाद में पता चला कि वह पत्थर ट्राली से नहीं बल्कि वह पहाड़ से खोद कर निकाले गए थे जिसके बाद व्यापक अनियमितता प्रकाश में आई थी और कार्यवाही करवाई गई थी।

 

*जानकारी, सुनवाई, भागीदारी, कार्यवाही और सुरक्षा सोशल ऑडिट के पांच सिद्धांत*

मजदूर किसान शक्ति संगठन के सह-संस्थापक शंकर सिंह ने बताया कि मजदूर किसान शक्ति संगठन की सोशल ऑडिट के पांच सिद्धांत है जिसमें सबसे पहले आरटीआई एवं अन्य माध्यमों से जानकारी प्राप्त करना फिर जानकारी के बाद जनता की भागीदारी के साथ जनसुनवाई आयोजित करना, जन सुनवाई उपरांत जो भी समस्याएं और भ्रष्टाचार परिलक्षित होते हैं उन्हें चिन्हित कर उन पर कार्यवाही करवाना और इन सब में जो भी आम जनता भागीदारी करती है उसकी सुरक्षा के लिए प्रयास किया जाता है। इस प्रकार जानकारी, सुनवाई, भागीदारी, कार्यवाही और सुरक्षा सोशल ऑडिट टीम के पांच मुख्य सिद्धांत हैं जिनके आधार पर काम किया जाता है। राजस्थान का उदाहरण देते हुए शंकर सिंह ने बताया कि मजदूर किसान शक्ति संगठन के प्रयासों के बाद काफी सुधार आया है और हमारी मांग है कि सोशल ऑडिट को एक कानून की संज्ञा देकर इसे एक्ट के रूप में मनाया जाना चाहिए और इस सब के लिए पूरे देश से सामाजिक संगठन, सामाजिक कार्यकर्ता, आरटीआई एक्टिविस्ट और सोशल ऑडिट में विश्वास रखने वाले लोगों को आगे आकर सरकार से मांग करनी चाहिए।

*शैलेश गांधी एवं आत्मदीप ने भी विभिन्न विषयों पर रखे अपने विचार*

इस बीच कुछ आवेदकों के द्वारा प्रश्न पूछे गए जिसमें आरटीआई की धारा 6(3) के अंतर्गत आंख मूंदकर आरटीआई पत्रों का अंतरण करना क्या जायज है और फिर ऐसी स्थिति में प्रथम अपीलीय अधिकारी कौन होंगे और कहां-कहां प्रथम अपील की जाएगी इस विषय का जवाब देते हुए पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने बताया कि यदि पत्र किसी अन्य संस्था अथवा विभाग को अंतरित किए गए हैं तो उस विभाग के अपीलीय अधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत की जानी चाहिए लेकिन यदि मुख्य विभाग एक ही है उस स्थिति में प्रथम अपीलीय अधिकारी वही होता है जहां सबसे पहले लोक सूचना का अधिकार का आवेदन लगाया जाता है। वहीं पूर्व राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने बताया की चाहे प्रथम अपील एक से अधिक स्थानों पर की जाए लेकिन जो द्वितीय और अंतिम अपील की जाती है वह मात्र सूचना आयोग में ही की जाएगी। आवेदकों को इस बात का ध्यान रखते हुए अपना आवेदन लगाना चाहिए। उच्च न्यायालय का उदाहरण देते हुए आत्मदीप ने बताया कि हमेशा आरटीआई आवेदनकर्ताओं को एक आरटीआई आवेदन में मात्र एक ही मद की जानकारी के लिए आवेदन दायर करना चाहिए जिससे आवेदन रिजेक्ट न हो और साथ में अंतरण करने में भी समस्या पैदा न हो।