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21वीं सदी में भी मानव खरीदकर जबरन श्रम व शोषण जारी : ओम आर्य

दतिया @rubarunews.com 21वीं सदी में भी लोग जिनमें बच्चे शामिल हैं खरीदे और बेचे जाते हैं ताकि उनसे जबरन श्रम कराकर उनका शोषण कर फायदा कमाया जा सके इस बात का हमें शायद अंदाजा ना हो कि हमारे रोजमर्रा के इस्तेमाल में आने वाले कई उत्पादों और सेवाओं में कहीं ना कहीं उन लोगों का योगदान होता है जो मानव तस्करी के शिकार हैं। ऐसा लगता है दुनिया के लाखों लोगों और बच्चों के लिए मानवाधिकार अभी भी किताबों की बात है जिसे जमीन पर लाने में ना जाने कितना वक्त लगेगा हालांकि मानव तस्करी से संबंधित आंकड़े ठीक से उपलब्ध नहीं है और इस अपराध से निपटने की दिशा में यह भी एक चुनौती है पर जो भी अनुमानित आंकड़े उपलब्ध है, एक भयानक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं।

 

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और वाक फ्री फाउंडेशन द्वारा प्रकाशित 2016 के ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के अनुसार वर्ष 2016 के किसी भी दिन दुनिया में चार करोड़ लोग मॉडर्न स्लेवरी के शिकार रहे जिनमें से एक करोड़ बच्चे भी थे और उनमें से 60% से भी ज्यादा लड़कियां।

 

एक अनुमान के अनुसार इस अवैध व्यापार में दुनियाभर में प्रति वर्ष 10 अरब भारतीय रुपये से अधिक का कारोबार होता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इसी ग्लोबल स्लेबरी इंडेक्स के अनुसार दुनिया के सभी देशों के मुकाबले भारत में सबसे ज्यादा लोग मॉडर्न स्लेबरी के शिकार हैं। भारत मानव तस्करी का केंद्र है और मानव तस्करी पीड़ितों का स्रोत और गंतव्य होने के साथ पारगमन भी है। जहां से लोगों को अन्य देशों और बड़े तस्करी सर्किट में भी भेजा जाता है। रिपोर्ट में लगाए गए अनुमान के अनुसार भारत में मानव तस्करी पीड़ितों की संख्या लगभग दो करोड़ लोग हैं।

 

अक्टूबर 2019 में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार बाल तस्करी के 886 मामलों के साथ राजस्थान पहले स्थान पर है। 450 मामलों के साथ पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर और बिहार तीसरे स्थान पर है। जहाँ हर रोज एक बच्चे की तस्करी हो जाती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि मध्यप्रदेश उन राज्यों में से एक है जहां मानव तस्करी की संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है। मध्यप्रदेश के इंदौर में वर्ष 2017 और 2018 के दौरान गुमशुदा बच्चों की सबसे अधिक संख्या दर्ज की गई।

 

विशेषज्ञों के अनुसार देश के केंद्र में होने के कारण मध्यप्रदेश मानव तस्करी का ट्रांजिट सेंटर भी बना हुआ है। जहां के आदिवासी इलाकों से बच्चों व महिलाओं को महानगरो में बंधुआ मजदूरी, देह व्यापार आदि में धकेल दिया जाता है। कई अध्ययनों में पाया गया है कि मानव तस्करी के पीड़ितों में से अधिकांश वे लोग हैं जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, और ज्यादातर अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग से संबंधित महिला और बच्चे हैं। यह वही लोग है जो महामारी और अन्य आपदाओ में सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं और तात्कालिक आर्थिक सहायता के लिए तस्करों के झांसे में आ जाते हैं। अभी कोविड-19 महामारी की बजह से पैदा हुए हालात में इस तरह के मामलों की बढ़ने की बहुत संभावना है।

 

संयुक्त राष्ट्र मादक पदार्थ एवं अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) ने 14 मई 2020 के एक शोध में कहा गया है कि कोविड-19 से बचने के लिए किए जा रहे उपायों के कारण कई देशों में एक बडे हिस्से के लोगों के लिए रोजगार के अवसर काफी कम हो गए और इसके लंबे समय जारी रहने का अनुमान है। बंचित वर्ग के लोगों को होने वाले इस आर्थिक नुकसान के कारण तस्करी की घटनाओं में भारी वृद्धि के हालात पैदा हो सकते हैं।

 

आर्थिक विकास से संबंधित सतत विकास लक्ष्य 8.7 (1) में 2030 तक ट्रैफिकिंग मॉडर्न स्लेबरी और फोसर्ड लेबर के उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत में मानव तस्करी के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।

 

मानव तस्करी पर 2018 में प्रकाशित एक अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत तस्करी के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण प्रयास कर रहा है परंतु अभी न्यूनतम मांगों को पूरी तरह से पूरा नहीं करता है। नीति आयोग जो सतत विकास लक्ष्यों के संदर्भ में जो प्रगति रिपोर्ट प्रकाशित करता है, उसमें ट्राफिकिंग मॉडर्न स्लेवरी और फोर्सड लेवर के उन्मूलन से संबंधित सूचकों पर आंकड़े भी नहीं दर्शाया जाते जिससे यह पता चल सके कि हम कहाँ पहुँच रहे हैं।

 

6 जुलाई 2020 को गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को एडवाइजरी जारी की जिसमें राज्य सरकारों को एन्टी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (AHTU) को तत्काल स्थापित करने और उनके बुनियादी ढांचे को प्रदान करने का निर्देश दिया है जो कि (AHPTU) को स्थापित करने और मजबूत करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। परंतु क्या इतना करना पर्याप्त है? विशेषज्ञों की राय है कि भारत ट्रैफिकिंग की समस्या को अभी भी मुख्यतः देह व्यापार से जोड़कर कर देखता है।

साभार :
राजीव भार्गव, CACL भोपाल, रामजीशरण राय CACL दतिया (म.प्र.)